कृष्ण भगवान की 16,108 पत्नियों की कथा हिंदू धर्म के महाभारत और भागवत पुराण में वर्णित है। इस कथा के पीछे एक महान संदेश और शिक्षा छिपी हुई है।
कृष्ण भगवान की 16,108 पत्नियों की कथा हिंदू धर्म के महाभारत और भागवत पुराण में वर्णित है। इस कथा के पीछे एक महान संदेश और शिक्षा छिपी हुई है।
जब कृष्ण भगवान द्वारका में निवास कर रहे थे, तब एक दैत्य राजा नरकासुर ने 16,100 कन्याओं का अपहरण कर उन्हें बंदी बना लिया था। नरकासुर अत्याचारी और पापी था। उसने उन कन्याओं को अपनी जेल में बंद कर रखा था और उनके साथ अमानवीय व्यवहार करता था।
जब यह बात कृष्ण तक पहुँची, तो उन्होंने नरकासुर का अंत करने का निर्णय लिया। माता सत्यभामा, जो कृष्ण की पत्नी थीं, उनके साथ युद्ध में गईं। युद्ध के दौरान, कृष्ण ने नरकासुर को मार गिराया और उन 16,100 कन्याओं को मुक्त कर दिया।
लेकिन उन कन्याओं के लिए समाज में एक बड़ा संकट खड़ा हो गया। उस समय की सामाजिक व्यवस्था के अनुसार, जो स्त्रियाँ किसी दूसरे पुरुष के अधीन रह चुकी होती थीं, उन्हें समाज अपनाने से इनकार कर देता था। उन कन्याओं ने कृष्ण से प्रार्थना की कि वे उन्हें अपनाएँ, क्योंकि अब उनके पास कोई दूसरा सहारा नहीं था।
कृष्ण भगवान ने उनकी प्रार्थना स्वीकार कर ली और धर्म की रक्षा और उन कन्याओं को सम्मान देने के लिए सभी से विवाह कर लिया। यह विवाह प्रतीकात्मक था। कृष्ण ने हर कन्या को उनके अधिकार, सम्मान और नया जीवन दिया।
इसके अलावा, उनकी प्रमुख आठ पत्नियाँ थीं, जिन्हें 'अष्टभार्या' कहा जाता है:
1. रुक्मिणी
2. सत्यभामा
3. जाम्बवती
4. कालिंदी
5. मित्रवृंदा
6. नाग्नजिती
7. भद्रा
8. लक्ष्मणा
कृष्ण की यह कथा यह सिखाती है कि एक सच्चा राजा और ईश्वर सभी के कल्याण के लिए अपने जीवन को समर्पित करता है। उनकी 16,108 पत्नियों की कथा यह भी दिखाती है कि प्रेम, सम्मान और करुणा किसी भी सामाजिक बंधन से ऊपर हैं।
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