कहानी: सेठ और गरीब की बेटी

कहानी: सेठ और गरीब की बेटी

एक छोटे से नगर में, एक धनी सेठ का आलीशान घर और उसके पड़ोस में एक गरीब मजदूर का टूटा-फूटा झोपड़ा था। सेठ का नाम लक्ष्मीचंद था, और वह धनवान होते हुए भी कृपण और स्वार्थी था। वहीं, गरीब मजदूर रघुनाथ अपनी मेहनत और ईमानदारी से जीवन बिताने में विश्वास रखता था।

रघुनाथ की बेटी रुक्मणि अब सयानी हो चुकी थी। उसका विवाह तय हो चुका था, लेकिन रघुनाथ के पास इतना धन नहीं था कि वह अपनी बेटी के विवाह की तैयारी कर सके। रुक्मणि के भविष्य को लेकर वह चिंतित था।

एक दिन रघुनाथ साहस जुटाकर सेठ लक्ष्मीचंद के पास गया और उससे हाथ जोड़कर कुछ धन उधार देने की विनती की। उसने कहा, "सेठ जी, मेरी बेटी का विवाह है। मैं इसे अच्छे से संपन्न करना चाहता हूँ, लेकिन मेरे पास पर्याप्त धन नहीं है। कृपया मेरी मदद करें। मैं आपके पैसे मेहनत करके लौटा दूंगा।"

सेठ ने रघुनाथ को ऊपर से नीचे तक देखा और फिर ठंडी हंसी के साथ कहा, "रघुनाथ, अपनी औकात देखो। तुम्हारे जैसे गरीब को पैसे उधार देकर मैं अपना नुकसान क्यों करूं? जाओ, जहां से आए हो, वहीं वापस जाओ।"

रघुनाथ का दिल टूट गया, लेकिन वह कुछ कह नहीं सका। वह निराश होकर अपने झोपड़े में लौट आया।

उस रात रघुनाथ और उसकी पत्नी ने बहुत सोच-विचार किया। आखिरकार, उन्होंने अपने पड़ोसियों और गाँव के अन्य लोगों से मदद मांगने का फैसला किया। रघुनाथ ने अपनी ईमानदारी और मेहनत के कारण गाँव वालों का विश्वास जीता था। धीरे-धीरे, सभी ने अपनी तरफ से थोड़ा-थोड़ा धन इकट्ठा कर दिया।

गाँव के लोगों की मदद से रघुनाथ ने रुक्मणि के विवाह की तैयारियां कीं। विवाह के दिन, गाँव के सभी लोग खुश थे, और समारोह धूमधाम से संपन्न हुआ। रुक्मणि की शादी देखकर रघुनाथ की आँखों में खुशी के आँसू थे।

इस घटना के कुछ समय बाद, सेठ लक्ष्मीचंद को व्यापार में बड़ा नुकसान हुआ। वह कर्ज में डूब गया और उसकी संपत्ति बिकने लगी। जब उसे सबसे ज्यादा मदद की जरूरत थी, तो उसी रघुनाथ ने, जिसने कभी उसकी विनती ठुकराई थी, सेठ की मदद के लिए हाथ बढ़ाया।

रघुनाथ ने कहा, "सेठ जी, मैंने सीखा है कि दूसरों की मदद करना इंसानियत है। अगर आप उस दिन मेरी मदद करते, तो आज आपको यह दिन नहीं देखना पड़ता। लेकिन मैं आपके जैसा नहीं हूं। आपकी जरूरत के समय मैं आपकी मदद करूंगा।"

सेठ लक्ष्मीचंद ने शर्मिंदा होकर रघुनाथ से माफी मांगी और वादा किया कि अब से वह जरूरतमंदों की मदद करेगा।

इस घटना ने पूरे गाँव को सिखाया कि धन-दौलत से बड़ा दिल और इंसानियत होती है। रघुनाथ की ईमानदारी और दयालुता ने उसे सच्चा नायक बना दिया।

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