लंगर वाली दाल – सेवा और प्रेम का प्रतीक
लंगर वाली दाल, जिसे "छोले मा दी दाल" भी कहा जाता है, एक खास पंजाबी दाल है जो गुरुद्वारों में बनने वाले लंगर में परोसी जाती है। यह सिर्फ एक साधारण दाल नहीं, बल्कि सिख समुदाय की उदारता, प्रेम और सेवा भाव का प्रतीक भी है। लंगर की परंपरा सिख धर्म के तीसरे गुरु, गुरु अमरदास जी ने शुरू की थी, ताकि हर व्यक्ति, चाहे किसी भी जाति, धर्म या सामाजिक स्तर का हो, एक साथ बैठकर समानता के भाव से भोजन कर सके।
गुरुद्वारों में बनने वाली इस दाल का स्वाद अनोखा होता है, क्योंकि इसे बहुत ही कम मसालों के साथ धीमी आंच पर पकाया जाता है, जिससे इसका असली स्वाद और खुशबू बरकरार रहती है। आइए जानते हैं इसे बनाने की पारंपरिक रेसिपी।
लंगर वाली दाल बनाने की विधि
सामग्री:
दाल पकाने के लिए:
- 1/2 कप उड़द दाल (धुली काली दाल)
- 1/2 कप चना दाल
- 1 तेज पत्ता
- 1/2 चम्मच हल्दी पाउडर
- 1/2 चम्मच लाल मिर्च पाउडर
- 1 चम्मच अदरक (कद्दूकस किया हुआ)
- 1 चम्मच लहसुन (बारीक कटा हुआ)
- 1 चम्मच नमक (स्वादानुसार)
- 3 कप पानी
तड़के के लिए:
- 2 बड़े चम्मच घी
- 1/2 चम्मच जीरा
- 1 बड़ा प्याज (बारीक कटा हुआ)
- 1 बड़ा टमाटर (बारीक कटा हुआ)
- 1/2 चम्मच हल्दी पाउडर
- 1/2 चम्मच लाल मिर्च पाउडर
- 1/2 चम्मच धनिया पाउडर
- 1/2 चम्मच नमक
- 1 चम्मच अदरक-लहसुन पेस्ट
- हरा धनिया (गार्निश के लिए)
बनाने की विधि:
स्टेप 1: दाल को पकाना
- उड़द दाल और चना दाल को अच्छे से धोकर 15-20 मिनट तक पानी में भिगो दें।
- प्रेशर कुकर में 3 कप पानी डालें और उसमें भिगोई हुई दाल डालें।
- अब इसमें तेज पत्ता, हल्दी, लाल मिर्च, अदरक, लहसुन और नमक डालें।
- कुकर का ढक्कन बंद करें और मध्यम आंच पर 5 सीटी लगाएं।
- जब प्रेशर खुद से निकल जाए, तो दाल को हल्के हाथों से मैश कर लें, ताकि यह थोड़ी गाढ़ी हो जाए।
स्टेप 2: तड़का तैयार करें
- एक पैन में घी गरम करें और उसमें जीरा डालें।
- जब जीरा चटकने लगे, तो कटा हुआ प्याज डालकर हल्का सुनहरा होने तक भूनें।
- अब अदरक-लहसुन पेस्ट डालकर 1-2 मिनट पकाएं।
- कटे हुए टमाटर डालें और मसाले मिलाएं – हल्दी, लाल मिर्च, धनिया पाउडर और नमक।
- इसे तब तक पकाएं जब तक टमाटर अच्छे से गल न जाएं और मसाले से तेल न छोड़ने लगे।
स्टेप 3: दाल और तड़के को मिलाना
- तैयार तड़के को पकी हुई दाल में डालें और अच्छे से मिलाएं।
- इसे धीमी आंच पर 5-7 मिनट तक पकने दें, ताकि सभी स्वाद अच्छे से मिक्स हो जाएं।
- ऊपर से थोड़ा सा घी और हरा धनिया डालकर सर्व करें।
लंगर और इसकी परंपरा
लंगर सिर्फ एक भोजन नहीं, बल्कि सिख धर्म की आत्मा है। इसे सिख धर्म के तीसरे गुरु, गुरु अमरदास जी ने शुरू किया था, जिनका उद्देश्य समाज में समानता और भाईचारे को बढ़ावा देना था। लंगर में हर व्यक्ति बिना किसी भेदभाव के ज़मीन पर एक साथ बैठकर भोजन करता है, जिससे यह संदेश जाता है कि हम सब समान हैं।
गुरुद्वारों में लंगर बनाने और परोसने का कार्य सेवा (सेल्फलेस सर्विस) के रूप में किया जाता है। यहाँ कोई भी व्यक्ति, चाहे किसी भी धर्म, जाति या देश से हो, भोजन कर सकता है और सेवा में हाथ बंटा सकता है।
लंगर की खास बातें:
- साधारण लेकिन पौष्टिक भोजन: लंगर में बनने वाला भोजन सादा लेकिन संतुलित और पौष्टिक होता है।
- सभी के लिए खुला: यहाँ हर कोई भोजन कर सकता है, बिना किसी भेदभाव के।
- सेवा भाव: लंगर में खाना बनाने से लेकर परोसने तक का काम स्वयंसेवकों (सेवादारों) द्वारा किया जाता है।
- समाज में समानता: लंगर की परंपरा यह सिखाती है कि हर इंसान समान है, चाहे वह किसी भी धर्म या जाति का हो।
निष्कर्ष
लंगर वाली दाल सिर्फ एक रेसिपी नहीं, बल्कि प्रेम, सेवा और समानता का प्रतीक है। इसे बनाना बहुत ही आसान है और इसका स्वाद लाजवाब होता है। अगर आप भी इस दाल को घर पर बनाएंगे, तो आपको गुरुद्वारे के लंगर का स्वाद और सेवा भाव का एहसास जरूर होगा।
अगर आपको यह रेसिपी और लंगर की जानकारी अच्छी लगी, तो इसे अपने दोस्तों और परिवार के साथ शेयर करें और इस पारंपरिक पंजाबी दाल का आनंद लें!
"वाहेगुरु जी का खालसा, वाहेगुरु जी की फतेह!"
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