श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन – एक आध्यात्मिक व्याख्या

श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन – एक आध्यात्मिक व्याख्या

"श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन" तुलसीदास जी द्वारा रचित एक प्रसिद्ध स्तुति है, जिसमें भगवान श्रीराम के दिव्य गुणों का सुंदर वर्णन किया गया है। यह स्तुति न केवल भक्तों के मन को शांति देती है बल्कि आध्यात्मिकता की ओर ले जाने का मार्ग भी दिखाती है। आइए इसके दोहों को विस्तार से समझते हैं।


पहला दोहा

श्री रामचन्द्र कृपालु भजुमन, हरण भवभय दारुणं।
नव कंज लोचन कंज मुख, कर कंज पद कंजारुणं ॥१॥

इस दोहे में तुलसीदास जी भगवान श्रीराम की करुणा और कृपा का वर्णन कर रहे हैं। वह अपने मन को निर्देश देते हैं कि वह श्रीराम का भजन करे, क्योंकि वे ही इस संसार के भय और दुखों का नाश करने वाले हैं।

व्याख्या:

  • "नव कंज लोचन": श्रीराम के नेत्र नवीन खिले हुए कमल के समान सुंदर और कोमल हैं।
  • "कंज मुख": उनका मुख कमल जैसा सुशोभित है।
  • "कर कंज, पद कंजारुणं": उनके हाथ और चरण भी लाल कमल की तरह दिव्य हैं।

यहां कमल का उपयोग भगवान के सौंदर्य और कोमलता को दर्शाने के लिए किया गया है।


दूसरा दोहा

कन्दर्प अगणित अमित छवि, नव नील नीरद सुन्दरं।
पटपीत मानहुँ तडित रुचि, शुचि नोमि जनक सुतावरं ॥२॥

यहां तुलसीदास जी भगवान श्रीराम की अनुपम सुंदरता का वर्णन कर रहे हैं।

व्याख्या:

  • "कन्दर्प अगणित अमित छवि": उनकी छवि इतनी सुंदर है कि अनगिनत कामदेव भी उनके सामने फीके पड़ जाते हैं।
  • "नव नील नीरद सुन्दरं": उनका रंग गहरे नीलमणि (या नव मेघ) की तरह मनमोहक है।
  • "पटपीत मानहुँ तडित रुचि": उनके पीले वस्त्र बिजली की चमक जैसी तेजस्वी और पवित्र लगते हैं।
  • "नोमि जनक सुतावरं": मैं उन्हें नमन करता हूँ जो सीता जी के प्रियतम हैं।

यह दोहा भगवान राम के सौंदर्य और तेजस्विता को दर्शाता है, जिसमें उनका स्वरूप एक आकर्षक और दिव्य पुरुषोत्तम के रूप में प्रकट होता है।


तीसरा दोहा

भजु दीनबन्धु दिनेश दानव, दैत्य वंश निकन्दनं।
रघुनन्द आनन्द कन्द कोशल, चन्द दशरथ नन्दनं ॥३॥

इस दोहे में श्रीराम के गुणों और उनकी परोपकारिता का वर्णन किया गया है।

व्याख्या:

  • "दीनबन्धु": श्रीराम दीन-दुखियों के सखा हैं, वे उनके कष्ट हरते हैं।
  • "दिनेश": वे सूर्यवंशी राजकुमार हैं और सूर्य के समान तेजस्वी हैं।
  • "दानव दैत्य वंश निकन्दनं": वे राक्षसों और असुरों का नाश करने वाले हैं, जिन्होंने रावण, खर-दूषण और अन्य दुष्टों का संहार किया।
  • "रघुनन्द": वे रघुकुल के गौरव और कोशल राज्य के चंद्रमा (शोभा बढ़ाने वाले) हैं।
  • "दशरथ नन्दनं": वे महाराज दशरथ के पुत्र हैं।

इस दोहे में भगवान राम के दयालु स्वभाव के साथ-साथ उनकी पराक्रम और परोपकारी छवि को भी दर्शाया गया है।


चौथा दोहा

शिर मुकुट कुंडल तिलक चारु, उदारु अङ्ग विभूषणं।
आजानु भुज शर चाप धर, संग्राम जित खरदूषणं ॥४॥

इस दोहे में भगवान राम की दिव्य शोभा और उनकी वीरता का वर्णन किया गया है।

व्याख्या:

  • "शिर मुकुट कुंडल तिलक चारु": उनके सिर पर मुकुट, कानों में कुंडल और सुंदर तिलक उनकी दिव्यता को दर्शाते हैं।
  • "उदारु अङ्ग विभूषणं": उनका संपूर्ण शरीर सुंदर आभूषणों से विभूषित है।
  • "आजानु भुज शर चाप धर": उनके लंबे और बलशाली भुजाओं में धनुष और बाण सुशोभित हैं।
  • "संग्राम जित खरदूषणं": वे युद्ध में खर और दूषण जैसे दुष्टों को पराजित कर चुके हैं।

इस दोहे में भगवान राम की दिव्यता और पराक्रम दोनों का समावेश है।


पाँचवाँ दोहा

इति वदति तुलसीदास शंकर, शेष मुनि मन रंजनं।
मम् हृदय कंज निवास कुरु, कामादि खलदल गंजनं ॥५॥

इसमें तुलसीदास जी भगवान से प्रार्थना कर रहे हैं कि वे उनके हृदय में निवास करें और उनके मन में उठने वाली सभी बुरी प्रवृत्तियों (काम, क्रोध, लोभ, मोह) को नष्ट करें।

व्याख्या:

  • "शंकर, शेष, मुनि मन रंजनं": भगवान राम शिव, शेषनाग और ऋषियों के मन को आनंदित करने वाले हैं।
  • "मम् हृदय कंज निवास कुरु": वे भगवान से विनती करते हैं कि वे उनके हृदय रूपी कमल में निवास करें।
  • "कामादि खलदल गंजनं": भगवान राम उनके मन से सभी बुरी आदतों और दोषों का नाश करें।

यह दोहा आध्यात्मिक साधना का महत्वपूर्ण संदेश देता है कि हमें भगवान को अपने हृदय में बसाना चाहिए और अपने भीतर की बुराइयों को दूर करने का प्रयास करना चाहिए।


निष्कर्ष

"श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन" केवल एक स्तुति नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक साधना का मार्गदर्शन भी है। यह हमें सिखाता है कि भगवान राम की भक्ति से जीवन के समस्त दुखों से मुक्ति मिलती है। उनकी सुंदरता, पराक्रम, दयालुता और करुणा का गुणगान करने से हमारा हृदय शुद्ध होता है और हमें आत्मिक शांति प्राप्त होती है।

तुलसीदास जी के इस भजन में भक्ति, प्रेम और समर्पण की अद्भुत भावना झलकती है। जब हम इसे श्रद्धा और प्रेम से गाते हैं, तो यह हमारे मन को शांत करता है और हमें श्रीराम के दिव्य चरणों में समर्पित होने की प्रेरणा देता है।

"जय श्री राम!"

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